52 शक्ति पीठो में एक माँ शारदा मंदिर


कहा जाता है कि ब्रह्मांड की भलाई के लए भगवान विष्णु ने ही माता सती के पार्थिव शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के शब के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठो का निर्माण हुआ। उन्ही में से एकशक्ति पीठ हैं, मैहर देवी, का मंदिर जहां मां सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब बैं मां का हार, इसी बजह से इस स्थल का नाम मैहर पड़ा।मध्यप्रदेश के चित्रकूट से लगे सतना जिले में मैहर शहर की लगभग 600 फुट की ऊंचाई वाली त्रिकुटा पहाड़ी पर माँ दुर्गा के शारदीय रूप श्रद्धेय देवी माँ शारदा का मंदिर स्थित हैं, जो मैहर देवी माता के नाम से सुप्रसिद्ध हैं, जहां श्रद्धालु माता का दर्शन कर आशीर्वाद लेने उसी तरह पहुंचते हैं जैसे जम्मू में मैँ बैष्णो देवी का दर्शन करने जाते हैं। माँ मैहर देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए 560 सीढिया तय करनी पड़ती हैं। मैहर राजवंश भी देवी शारदा का अनन्य उपासक रहा है. राजा दुर्जन सिंह ने लगभग 200 वर्ष पूर्व श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रामगिरि (त्रिकूट) पर्वत में 560 सीढ़ियों का निर्माण कराया था। रोपवे यहां से शुरू हो चुका हैं। आला-उदल को वरदान देने वाली माँ शारदा देवी को पूरे देश में मैहर की शारदा माता के नाम से जाना जाता हैं।


इनकी उत्पति के पीछे एक पौराणिक कहानी जिसमें कहा गया है सम्राट दक्ष प्रजापति की पुत्री सती, भगवान शव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन राजा दक्ष भगवान शिव को भगवन नहीं, भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे और इस विवाह के पक्ष में नहीं थे, पर सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने बृहस्पति सर्व, नामक यज्ञ कराया उस यज्ञ में ब्रहा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाई भगवान महादेव को नही बुलाया, महादेव की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुई और यज्ञ- स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा, इस पर दक्ष प्रजापति ने भरे समाज में भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहा, तब इस अपमान से पीड़ित होकर सती मौन हो उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ गयी और भगवान शंकर के चरणों में अपना ध्यान लगाकर योग मार्ग के द्वारा वायु तथा अग्नि तत्व को धारण करके अपने शरीर को अपने ही तेज से भस्म कर दिया।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उन्होंने तीसरा नेत्र खोल गया और यज्ञ का नाश हो गया। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के अंग को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहां शक्ति पीठ हैं मैहर देवी, का मंदिर जहां सती का हार गिरा था। मैहर का मतबल हैं। माँ का हार, इसी वजह से इस स्थल का नाम मैहर पड़ा था। कुछ विद्वानो ने अपने मत के अनुसार कहा की देवी पुराण (महाभागवत) शक्ति पीठांक के अनुसार मैहर के रामगिरि पर्वत पर देवी सती का दाहिना स्तन गिरा था। सती माता के गिरे स्तन से दुग्ध धारा स्फुटित हुई थी जो नदी के रूप में परिणित हो गयी थी, जो लिज्जी नदी के नाम से आज भी मौजूद हैं। अगले जन्म मेंसती ने हिमाचल राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति के रूप में प्राप्त कर लिया।

त्रेतायुग में भगवान राम भी अपने चौदह वसवास काल में सुतीक्षण मुनि जिनका आश्रम मौजूदा सतना नगर मेंथा, के दर्शन के उपरांत मैहर आये तथा एक सप्ताह तक मैहर में प्रवास किया। द्वापर युग में महाभारत के पूर्व वनवास काल के समय पाण्डवों ने प्रयाग से मैहर की यात्रा की। देव व्यास जी ने मैहर को "महीधर" नाम से सम्बोधित किया था। पाण्डवों ने मैहर मेंरहकर माँ शारदा शक्तिपीठ की उपासना की थी।इस तीर्थस्थल के संदर्भ में एक अन्य दन्तकथा भी प्रचलित हैं। स्थानीय परंपरा के मुताबिक दो वीर भाई आल्हा-उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वो भी माँ शारदा माता के बडे भक्त हुआ करते थे। इन्ही दोनो ने सबसे पहले जंगलों के बीच माँ शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में बारह सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हे अमरत्व का आर्शीवाद दिया था। कहते है कि दोनो भाईयों ने भक्ति –भाव से अपनी जीभ माँ शारदा को अर्पण कर दी थी, जिसे माँ शारदा ने उसी क्षण जीभ वापस कर दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कर कर पुकारा करता था और तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। पृथ्वीराज चौहान द्वारा किया गये आक्रमण में ऊदल की मृत्यु पृथ्वीराज के हाथों हुई। यह समाचार आल्हा को मिला तो उन्होने पृथ्वीराज चौहान को ललकार और उसके सामने आकर उन्हे घोड़े के खीचकर पटक दिया तथा उनके वक्ष स्थल पर पांव रखकर अपनी दिव्य तलवार से उनका वध करने जा रहे थे।तभी युद्धभूमि गुरूगौरखनाथ ने प्रकट होकर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। भगवान शंकर के अंशावतार कहे जाने वाले महान योगी गुरू गोरखनाथ की भी आराध्या मैहर वाली माँ शारदा ही थीं। आज भी ये मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ो के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता हैं कि याहं आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। इस समय मंदिर का पूरा कार्य शारदा समिति की जिम्मेदारी पर चल रहा हैं, जिसके अध्यक्ष सतना के जिलाधिकारी हैं।

मैहर की माता शारदा देवी मंदिर का इतिहास: मंदिर के इतिहास के बात करें तो माँ शारदा की प्रतिष्ठापति मूर्ति चरण के नीचे अंकित एक प्राचीन शिलालेख से मूर्ति की प्राचीन प्रमाणिकता की पुष्टि होती हैं। मैहर नगर के पश्चिम दिशा में चित्रकूट पर्वत में श्री आद्दा शारदा देवी तथा उनके बायी ओर प्रतिष्ठीत श्री नरसिंह भगवान की पाषाण मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा आज से लगभग 1994 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत 5599 षत 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी दिन मंगलवार ईसवी सन 502 में तोर मान हूण के शासन काल में श्री नुपुल देव द्वारा कराई गई थी। इस मंदिर में बलि देने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ थी। जिसे 1922 ई में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।