शिव साधना का महान पर्व महाशिवरात्रि
शिवरात्रि का पावन पर्व शिव साधना से परमात्मा शिव को खुश करके उनकी कृपा प्राप्त कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करना है। यह वह दिन है जब सभी साधक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं। इस साल महाशिवरात्रि 1 मार्च को मनाई जा रही है। शिवरात्रि के दिन लोग मंदिर जाते हैं और वहाँ जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। इसी के साथ सभी साधक अपने-अपने तरीकों से भगवान शिव को साधना का प्रयास करते हैं। शिव की पूजा के समय खास रंग के कपड़े पहनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस शिवरात्रि कौन से रंग के कपड़े आपकी पूजा को सफल बना सकते हैं।भगवान शिव की आराधना के समय हरे रंग के कपड़े धारण करना शुभ माना जाता है। इसी के साथ अगर आप हरे रंग के साथ सफ़ेद रंग के वस्त्र भी धारण करते हैं तो यह अधिक लाभदायक होगा। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि भोले बाबा को सफ़ेद और हरा रंग बहुत प्रिये होता है इसलिए शिवरात्रि के दिन शिव जी को चढ़ाये हुए फूल और बेल-धतूरा सफ़ेद और हरे रंग के ही होते हैं।इसी के साथ शिवरात्रि के दिन हरे रंग को धारण करना बहुत शुभ मन जाता है। वहीं अगर आपके पास हरे या सफ़ेद रंग के वस्त्र नहीं हैं तो आप लाल, केसरिया, पीला, नारंगी तथा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर के भोले बाबा की आराधना कर सकते हैं। ध्यान रहे भगवान शिव को काला रंग बिलकुल भी प्रिये नहीं होता। दरअसल काला रंग अंधकार और भसम का प्रतीक होता है इसलिए कभी भी शिवरात्रि के दिन काले रंग के वस्त्र न धारण करें। आपको बता दें कि काले वस्त्रों के साथ काला दुपट्टा, बिंदी, चूड़ियां भी नहीं पहनना चाहिए। वहीं अगर आप भगवान शिव को अपनी श्रद्धा और आराधना से प्रसन्न करना चाहते हैं तो शिवरात्रि के दिन काले रंग का त्याग कर दें।महाशिवरात्रि पर्व शिव और शक्ति के मिलन का पर्व माना जाता है। वैसे तो प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ये पर्व मनाया जाता है। लेकिन फाल्गुन महीने में आने वाली मासिक शिवरात्रि सबसे खास होती है जिसे महा शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शिव भक्तों के लिए ये दिन काफी खास होता है। इस साल ये पर्व 1 मार्च को मनाया जा रहा है।महाशिवरात्रि 1 मार्च को सुबह 3 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगी।
पहला प्रहर का मुहूर्त-:1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक है।
दूसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक है।
तीसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक है।
चौथे प्रहर का मुहूर्त-: 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक है।
पारण समय-: 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद है।सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इतना ही नहीं चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी अलग हैं।
प्रथम प्रहर में- 'ह्रीं ईशानाय नम:
दूसरे प्रहर में- 'ह्रीं अघोराय नम:
तीसरे प्रहर में- 'ह्रीं वामदेवाय नम:
चौथे प्रहर में- 'ह्रीं सद्योजाताय नम:।। मंत्र का जाप करना चाहिए।एक साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भोलेनाथ दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। इस दिन विधिवत आदिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का निवारण होता है।अमावस्या से एक दिन पूर्व, हर चंद्र माह के चौदहवें दिन को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों के अलावा फरवरी-मार्च माह में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इन सभी में से महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व सबसे ज्यादा है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध कुछ ऐसी स्थिति में होता है कि मनुष्य में ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए ही, इस परंपरा में हमने इस पूरी रात चलने वाले उत्सव की स्थापना की। इस उत्सव का एक सबसे मुख्य पहलू ये पक्का करना है कि प्राकृतिक ऊर्जाओं के प्रवाह को अपनी दिशा मिल सके। इसलिए आप अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए जागते रहते हैं।आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। पारिवारिक परिस्थितियों में जी रहे लोगों तथा महत्वाकांक्षियों के लिए भी यह उत्सव बहुत महत्व रखता है। जो लोग परिवार के बीच गृहस्थ हैं, वे महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं से घिरे लोगों को यह दिन इसलिए हत्वपूर्ण लगता है क्योंकि शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय पा ली थी।साधुओं के लिए यह दिन इसलिए महत्व रखता है क्योंकि वे इस दिन कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। वे एक पर्वत की तरह बिल्कुल स्थिर हो गए थे। यौगिक परंपरा में शिव को एक देव के रूप में नहीं पूजा जाता,, वे आदि गुरु माने जाते हैं जिन्होंने ज्ञान का शुभारंभ किया। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के बाद, एक दिन वे पूरी तरह से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि था। उनके भीतर की प्रत्येक हलचल शांत हो गई और यही वजह है कि साधु इस रात को स्थिरता से भरी रात के रूप में देखते हैं।यौगिक परंपरा के अनुसार इस दिन और रात का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन आध्यात्मिक जिज्ञासु के सामने असीम संभावनाएँ प्रस्तुत होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से गुज़रते हुए, उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ वे ये प्रमाणित कर रहे हैं – कि आप जिसे जीवन के रूप में जानते हैं, जिसे आप पदार्थ और अस्तित्व के तौर पर जानते हैं, जिसे ब्रह्माण्ड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं, वह केवल एक ऊर्जा है जो अलग-अलग तरह से प्रकट हो रही है।
यह वैज्ञानिक तथ्य ही प्रत्येक योगी का भीतरी अनुभव होता है। योगी शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जिसने अस्तित्व की एकात्मकता का एहसास पा लिया हो। जब मैं 'योगÓ शब्द का प्रयोग करता हूँ तो मैं किसी एक अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। उस असीमित को जानने की हर प्रकार की तड़प, अस्तित्व के उस एकत्व को जानने की इच्छा – योग है। महाशिवरात्रि की वह रात, उस अनुभव को पाने का अवसर भेंट करती है।हम सत्यम,शिवम,सुंदरम को आत्मसात कर स्वयं को आत्म बोध में स्थापित कर परमात्मा से अपनी लौ लगाये।यह लौ हमारे अंदर के विकारों से हमे मुक्त कर हमारे कल्याण का माध्यम बनती है।युग परिवर्तन के लिए भी परमात्मा शिव हमे संगम युग मे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति कराकर कलियुग से सतयुग में लाने के लिए यज्ञ रचते है।जिसमे स्त्री शक्ति का पोषण कर उन्हें युग परिवर्तन के निमित्त बनाया जाता है।वस्तुत:विश्व रचियता परमात्मा एक है जिसे कुछ लोग भगवान,कुछ लोग अल्लाह,कुछ लोग गोड ,कुछ लोग ओम, कुछ लोग ओमेन ,कुछ लोग सतनाम कहकर पुकारते है। यानि जो परम ऐश्वर्यवान हो,जिसे लोग भजते हो अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में ,एक परमशक्ति के रूप में एक परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा,विष्णु और शकंर के भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है शिव ही सुन्दर है यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।गीता में कहा गया है कि जब जब भी धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते है,समाज में अनाचार, पापाचार, अत्याचार, शोषण, क्रोध, वैमनस्य, आलस्य, लोभ, अहंकार, का प्रकोप बढ़ जाता है।माया मोह बढ जाता है तब परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का कार्य करना पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत होता है। पहले सतयुग,फिर द्वापर,फिर त्रेता और फिर कलियुग तक की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हांलाकि सतयुग में हर कोई पवित्र,सस्ंकारवान,चिन्तामुक्त और सुखमय होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से द्वापर और द्वापर से त्रेता तथा त्रेता से कलियुग तक का कालचक्र धूमता है। वैसे वैसे व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और सुखमय से अशान्त,दुषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग के अन्त और सतयुग के आगमन की धडी आती है तो उसके मध्य के काल को सगंम युग कहा जाता है यही वह समय जब परमात्मा स्वंय सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं को पवित्र और पावन करने के लिए उन्हे स्वंय ज्ञान देते है औरउन्हे सतयुग के काबिल बनाते है। समस्त देवी देवताओ में मात्र शिव ही ऐसे देव है जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में ज्योतिर्लिगं के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है।धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करे तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नम: शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है।