मुशर्रफ को सजा


पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान की विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई। उन्होंने 2007 में इमरजेंसी लगाकर असंवैधानिक रूप से अपना कार्यकाल बढ़ाने की कोशिश की थी। इसी को लेकर मुशर्रफ पर देशद्रोह का केस चल रहा था। करीब छह साल तक चले इस मामले में आखिरकार फैसला आया। मुशर्रफ को सजा दिलाने में चीफ जस्टिस आसिफ सईद खान खोसा की अहम भूमिका रही। कानूनी बिरादरी मानती है कि एक सैन्य शासक को सजा दिलाने में चीफ जस्टिस खोसा की भूमिका की वजह से उन्हें इतिहास याद रखेगा। हाल में लिए गए उनके फैसलों को सेना के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। पाकिस्तान के 72 साल के इतिहास में पहली बार है जब एक पूर्व तानाशाह को देशद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाई गई। सूत्रों के मुताबिक, चीफ जस्टिस खोसा की वजह से इसे पाकिस्तानी न्याय व्यवस्था की ओर से सेना को चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही में खोसा ने आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल पर सवाल खड़ा करते हुए इसे तीन साल से घटाकर छह महीने कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि सेवा विस्तार का नोटिफिकेशन राष्ट्रपति जारी करता है, तो सरकार ने बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला कैसे कर लिया? इस फैसले से पाकिस्तानी सेना खासी नाराज थी। रिटायर्ड जनरल अमजद शोएब ने इसे पूरी फौज की बेइज्जती करार दिया था। बहरहाल, लंबे समय से देशद्रोह के मुकदमे का सामना कर रहे पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुना कर विशेष अदालत ने यह संदेश दिया है कि पाकिस्तान में न्याय अभी जिंदा है और कानून से ऊपर कोई नहीं है। अदालत का यह फैसला बता रहा है कि तमाम दबावों और संकटों के बावजूद पाकिस्तान की न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करती है। फांसी की सजा तो दूर, मुशर्रफ को सजा मिलेगी भी या नहीं, इसे लेकर ही पाकिस्तान में संशय बना हुआ था। मुशर्रफ सिर्फ देश के राष्ट्रपति ही नहीं रहे, वे पाकिस्तान के सैन्य शासक, देश के सेना प्रमुख, करगिल युद्ध के नायक जैसे रूपों में मील के पत्थर गाड़ते रहे। इसलिए मुशर्रफ को मौत की सजा की खबर चौंकाने वाली है। मुशर्रफ चाहे सेना में रहे हों या राजनीति में, अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वे हमेशा ही चतुराई से भरी चालें चलते रहे। 1998 में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सत्ता का तख्तापलट कर देश का सैन्य बनना इस दिशा में पहला कदम था। इसके बाद उन्होंने अपने को पाकिस्तान का सीईओ घोषित कर डाला था। जैसे-जैसे मुशर्रफ की ताकत बढ़ती गई, वे देश के निर्वाचित राष्ट्रपति तक हो गए। 2001 से 2008 तक के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने न्यायपालिका, कानून, संविधान को कुछ नहीं समझा। हद तो तब हो गई जब तीन नवंबर 2007 में अपनी शक्तियों के अहंकार में उन्होंने देश के संविधान को निलंबित कर देश में आपातकाल लगा दिया था और पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश सहित साठ से ज्यादा जजों को नजरबंद कर दिया था। यह पाकिस्तान की न्यायपालिका पर सबसे बड़ा संकट था। तब शायद ही उन्हें इस बात का अंदाजा रहा होगा कि सत्ता के दंभ में जो फैसला उन्होंने किया है, वही किसी दिन उनकी मौत का फरमान भी बन सकता है। आज मुशर्रफ को इसी किए की सजा मिली है। मुशर्रफ के खिलाफ पाकिस्तान की अदालतों में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या, पद के दुरुपयोग जैसे मामले भी चल रहे हैं। वे लंबे समय से दुबई में रह रहे हैं और इन दिनों गंभीर रूप से बीमार हैं। जब 2013 में नवाज शरीफ फिर से सत्ता में लौटे तो 2014 में मुशर्रफ के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा शुरू हुआ। मुशर्रफ खुद इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके थे कि वे अब बच नहीं पाएंगे, इसीलिए उन्होंने लंबे समय तक कानूनी-दांवपेचों का सहारा लिया और विशेष अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। हालांकि विशेष अदालत का यह फैसला इस्लामाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश के बावजूद आया है जिसमें विशेष अदालत को फैसला देने से रोक दिया गया था, जबकि उसने 19 नवंबर को यह फैसला सुरक्षित रख लिया था और 28 नवंबर को फैसला सुनाया जाना था। आज मुशर्रफ और नवाज शरीफ दोनों ही एक जैसी हालत में हैं, बीमार और सजायाफ्ता। मुशर्रफ को सजा और वह भी फांसी की सजा, देश के सैन्य प्रतिष्ठान को कहीं न कहीं विचलित तो जरूर कर रही होगी!