अभिनेता श्रीराम लागू का निधन
- गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार
मुंबई,। जाने माने अभिनेता और रंगकर्मी श्रीराम लागू का पुणे के दीनानाथ मंगेशकर हॉस्पिटल में निधन हो गया। वे ९२ साल के थे। गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। लागू पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। श्रीराम लागू मराठी थिएटर के मझे हुए कलाकार थे और पेशे से वह डॉक्टर थे। लागू ने अपने कैरियर में करीब 100 से ज्यादा हिंदी और 40 से ज्यादा मराठी फिल्मों में काम किया है। श्रीराम लागू का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की और एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने थियेटर करना शुरू कर दिया था। वे प्रोग्रेसिव ड्रैमेटिक एसोसिएशन से जुड़े। लागू ने मुंबई और पुणे में पढ़ाई की, कैरियर के लिए उन्होंने मेडिकल को चुना। उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से ईएनटी सर्जरी में डिग्री हासिल की और 6 साल तक पुणे में प्रैक्टिस की। वे नाक, कान, गले के सर्जन थे। इसके बाद एडिशनल ट्रेनिंग के लिए वे कनाडा और इंग्लैंड भी गए। भारत वापस आने के बाद उन्होंने पुणे में प्रॉपर प्रैक्टिस शुरू की। इसके बाद उन्होंने एक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखा और उन्होंने 42 साल की उम्र में अभिनय को अपना पेशा बना लिया। लागू को अभिनय में बचपन से ही रुचि थी, लिहाजा डॉक्टर बनने तक यह सिलसिला चलता रहा। यही कारण है कि मेडिकल की सेवाएं देने वह अफ़्रीका समेत कई देशों में गये। लेकिन मन एक्टिंग में ही अटका रहा। उन्होंने 'आहट: एक अजीब कहानी', 'पिंजरा', 'मेरे साथ चल, 'सामना', 'दौलत' जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया है। साल 1978 में फिल्म घरौंदा के लिए डॉ. लागू को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। मराठी थिएटर में मील का पत्थर कहा जाने वाला नाटक नट सम्राट में श्रीराम लागू ने जोरदार अभिनय किया था। इस नाटक को प्रसिद्ध लेखक कुसुमाग्र ने लिखा था। श्रीराम लागू के इस नाटक में अभिनय को आज भी सराहा जाता है। क्योंकि इसमें लागू ने अप्पासाहेब बेलवलकर की भूमिका निभाई थी। नाटक में लागू की भूमिका को देखने के बाद लोगों ने उन्हें नट सम्राट कहना शुरू कर दिया था। निजी जीवन की बात करें तो उन्होंने दीपा लागू से शादी की थी। दीपा खुद भी थियेटर और फिल्मों से जुड़ी हुई थीं। इस शादी से उन्हें 2 बेटे थे और एक बेटी थी। अपने अभिनय के लिए श्रीराम लागू को कई दफा सम्मानित भी किया गया। उन्हें घरौंदा फिल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा साल 1997 में उन्हें कालीदास सम्मान और साल 2010 में उन्हें संगीत नाटक अकेडमी के फेलोशिप अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। भले ही ये बेमिसाल शख्सियत अब हमारे बीच नहीं रहा मगर शानदार अभिनय की वजह से उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।